Maa Aavad Aaimaa
જગત ની આ ભીડ ભારી છે !
કયાંય હું ખોવાઈ ન જાઉં,
જવાબદારી આવળ તારી છે.
🙏 જય મા આવળ
देवी हिंगलाज माता सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने 8वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़ (मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया था । ये सात बहिने थी-1-आवड, 2-गुलो,3- हुली,4- रेप्यली, 5-आछो, 6-चंचिक और 7-लध्वी। ये सब परम सुन्दरियां थी। कहते है कि इनकी सुन्दरता पर सिंध का यवन बादशाह हमीर सुमरा मुग्ध था। इसी कारण उसने अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा पर इनके पिता के मना करने पर, बादशाह ने इनके पिता को कैद कर लिया। यह देखकर छ: देवियाँ सिंध से तेमडा पर्वत पर आ गईं। एक बहिन आवड देवी काठियावाड़ के दक्षिण पर्वतीय प्रदेश में 'तांतणियादरा' नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी। यह आवड देवी भावनगर कि कुलदेवी मानी जाती हैं, ओर समस्त काठियावाड़ में भक्ति भाव से इसकी पूजा होती है। जब आवड देवी ने तेमडा पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया तब इनके दर्शनाथ अनेक चारणों का आवागमन, इनके स्थान कि और निरंतर होने लगा और इनके दर्शनाथ हेतु लोग समय पाकर यही राजस्थान में ही बस गए। आवड देवी ने तेमडा नाम के राक्षस को मारा था, अत: इन्हे तेमडेजी भी कहते है। आवड जी का मुख्य स्थान जैसलमेर से 20 मील दूर एक पहाडी पर बना है।
माँ हिंगलाज का आवड़ माता के में अवतार –
मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं
थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा
की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे
यहाँ जन्म लें। माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म
लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों
पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश
की रक्षा की।माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित
हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को
स्वर्ण सिंहासन भेंट किया।
आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए विक्रम संवत 828 ईस्वी में, तनोट में अपनी
स्थापना खुद की थी-
विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने
भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की। विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र सिद्ध देवराज, भक्तों,
ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों
और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से
आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ।
इतना कहकर सभी बहनों ने पश्चिम में हिंगलाज माता की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं।
Maa Aavad Aaimaa
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